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"काँपते कगार / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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झाँप रही केसरी बदन केश लहर बिखर- | झाँप रही केसरी बदन केश लहर बिखर- | ||
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गन्ध घोलता तैरा हर अंग का निखार । | गन्ध घोलता तैरा हर अंग का निखार । | ||
दंशित मृदु धमनियाँ बजीं एक साथ एक | दंशित मृदु धमनियाँ बजीं एक साथ एक | ||
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विद्युत-अणु रेंगते चले आलोकित — | विद्युत-अणु रेंगते चले आलोकित — | ||
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पंख खोलता आर-पार दूधिया उभार । | पंख खोलता आर-पार दूधिया उभार । | ||
धरती की शब्द-चेतना सो गई तुषार | धरती की शब्द-चेतना सो गई तुषार | ||
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याद भरी गीत की कड़ी अँकुराई पर्त | याद भरी गीत की कड़ी अँकुराई पर्त | ||
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झूलता रहा प्यास भरा इन्तज़ार । | झूलता रहा प्यास भरा इन्तज़ार । | ||
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18:47, 20 जुलाई 2014 का अवतरण
लहरों पर
रोशनी गिरी पानी में पड़ गई दरार ।
चाँदी की
एक अरगनी बाँध गई काँपते कगार ।
मुग्धा विस्मित अमराई नहा रही दूर
घाट पर
झाँप रही केसरी बदन केश लहर बिखर-
बिखर कर
धारा में
गन्ध घोलता तैरा हर अंग का निखार ।
दंशित मृदु धमनियाँ बजीं एक साथ एक
ताल में
विद्युत-अणु रेंगते चले आलोकित —
अन्तराल में
अम्बर से
पंख खोलता आर-पार दूधिया उभार ।
धरती की शब्द-चेतना सो गई तुषार
ओढ़ कर
याद भरी गीत की कड़ी अँकुराई पर्त
तोड़ कर
पलकों पर
झूलता रहा प्यास भरा इन्तज़ार ।