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बीतल आध शताब्दी जहिया देश भेल स्वाधीन,
एतबहि दिनमे बिलटि गेल सबजे किछु छल प्राचीन।
गान्धीजीक सकल चिन्तन सपने बनि कऽ रहि गेल,
सब सुख-सुविधा सीमित एखनहु किछुए लोकक लेल।
गाम धसल पाताल, नगर उठि चूमि रहल आकाश,
किछु घरमे पेपच पड़ैछ, बाँकीमे पड़य उपास।
ग्रामवासिनी भारतमाता बनलि ‘इण्डिया’ कानथि,
कोटि-कोटि सन्तानक क्रन्दन पथने कान अकानथि।
खण्डित भेल देश पहिले दिन, आब समाजो टूटल,
हाथ पसारि रहल छी लेने टिनही बाटी फूटल।
कृषि व्यवसाय मुख्य छल, पोषक छल कुटीर उद्योग,
ई पँचबरखा भेल योजना, रहल न किछु नीरोग।
रहि सकलहु ने घरक, घाट धरि पहुँचल नहिए भेल,
फकफक-फकफक दीपक-जरइछ बाती अछि बिनु तेल।
भौतिकवादक चमक-दमकमे आँखि तेना चोन्हरायल,
पहिलुक अरजल गेल, हाल पर हाथ न किछुओ आयल।
नैसर्गिक वन उजड़ल, जन्मल ई कंक्रीटक जंगल,
पर्यावरण प्रदूषित चौदिस पसरल गेल अमंगल।
भूगर्भक संचित निधि सब मङनीमे फुकारहल अछि,
राष्ट्रक धन जेम्हरे जे पाबय तेम्हरे नुका रहल अछि।
कर्णधार जे बनला से कुड़ियौलनि अपने पेट,
जनताकेँ टल्हा, अपना सोना चौबीस करेट।
सौंसे सदाचारकेँ टप दऽ कदाचार गिड़ि गेल,
न्यायपालिकासँ विधायिका अछि सोझे भिड़ि गेल।
साक्षर शब्द उन्टला पर सद्यः राक्षस बनिजाय,
जे कहबय नेता जनताकेँ सैह रहल भुतिआय।
केवल मत मङबाक समय मे आबथि बनि जन-सेवक
जितला पर सर्वज्ञ कहाबथि, जनता कहबय बुड़िबक।
जन प्रतिनिधि अपनाकेँ मानथि संविधानसँ ऊपर
ओ बैसथि गाछक फुनगी पर आ मतदाता भूपर।
तेँ मतदाता पतलो खड़रथु, फल सब हुनके हिस्सा,
ओ सगरो संसार घुमथु, जनताकेँ सुनबथु खिस्सा।
रामराज्य शब्द पाछाँमे भेल हकारक योग,
तेँ गणतन्त्रक जगह पकड़लक ‘गन’-तन्त्रक उद्योग।
आन आन सब देश अपन मिलि जुलि कयलक उत्थान,
चौबटियापयर हकमि रहल अछि थाकल हिन्दुस्थान।