"चश्मा / रश्मि रेखा" के अवतरणों में अंतर
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23:00, 4 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
चश्मे के पास थी वह खास रोशनी
जो मेरी आँखों की गुम हो गई थी
और आ गया वह सारी किताबों के बीच
सारी लिखाबत के बीच तीसरा बनकर
किसी चाश्माघर से निकलकर
अनचाहे मेहमान सा धमक कर
सीधे चढ़ गया मेरी नाक पर
जिस पर कभी मैंने मख्खी भी नहीं बैठने दी
बहुत अटपटा लगा उसका इस तरह आना
जिसका जाना कभी मुमकिन ही न हो
फिर उसके रख-रखाव की फ़िक्र
इतनी हिफाज़त तो मैंने
कभी अपनी आँखों की भी नहीं की
शीशे की चहारदीवारी में बंद आँखों
देखा करती है अपनी छिन गई आजादी
दूसरे की बढ़ती दखलअंदाजी
उसकी गैरहाजिरी में नामुमकिन होती गई
शब्दों की दुनिया से मुलाक़ात
कितना मुश्किल है किसी खास चश्में से
चीज़ो को पहचानने की आदत डालना
भले ही वह चश्मा अपना हो
क्या कभी मुमकिन है
अपनी नजर को अपने ही चश्में से देखना