भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ सरस्वती / गिरीश पंकज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> जय, ज...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=गिरीश पंकज
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

11:18, 16 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

जय, जय, जय हे माँ सरस्वती,
तुमको आज निहार रहा हूँ ।
अपने हाथ पसार रहा हूँ ।।

ज्ञान-शून्य हो भटक रहा हूँ,
मुझको नव-पथ तू दर्शा दे ।
सूखे मानस में तू मेरे,
ज्ञान-सुधा आकर बरसा दे ।
मुझको शक्ति दे दे माता,
पल-पल में मैं हार रहा हूँ ।।

मातृभूमि की सेवा ही अब,
जीवन का आधार बने माँ ।
कर्म हमारी पूजा होगी,
स्वार्थ नहीं दीवार बने माँ ।
दे आशीष मुझे ओ शारद,
कबसे तुम्हें पुकार रहा हूँ ।।

कर कमलों में वीणा शोभित,
सत्कर्मों के गीत सुनाते ।
श्वेत-वसन पावन माँ तेरे,
विमल आचरण को दर्शाते ।
ज्ञान किरण दे, घोर तिमिर में,
घिरता मैं हर बार रहा हूँ ।

जय, जय, जय हे माँ सरस्वती,
तुमको आज निहार रहा हूँ ।