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मातृभाषा प्रेम पर दोहे / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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KKCatदोहा
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
Sharda suman
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