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"रेल- जिन्दगी / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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− | एक ट्रैक पर | + | एक ट्रैक पर |
− | रेल | + | रेल ज़िंदगी |
कब तक? | कब तक? | ||
− | कितना सफ़र सुहाना | + | कितना सफ़र सुहाना |
− | धक्का-मुक्की | + | धक्का-मुक्की |
− | भीड़-भड़क्का | + | भीड़-भड़क्का |
− | बात-बात पर | + | बात-बात पर |
− | चौका-छक्का | + | चौका-छक्का |
− | चोट किसी को | + | चोट किसी को |
− | लेकिन किसकी | + | लेकिन किसकी |
− | ख़त्म कहानी | + | ख़त्म कहानी |
− | किसने जाना | + | किसने जाना |
− | एक आदमी | + | एक आदमी |
− | दस मन अंडी | + | दस मन अंडी |
− | लदी हुई है | + | लदी हुई है |
− | पूरी मंडी | + | पूरी मंडी |
− | किसे पता है | + | किसे पता है |
− | कहाँ लिखा है | + | कहाँ लिखा है |
− | किसके खाते आबोदाना | + | किसके खाते |
+ | आबोदाना | ||
− | बिना टिकट | + | बिना टिकट |
छुन्ना को पकड़े | छुन्ना को पकड़े | ||
− | रौब झाड़ कर | + | रौब झाड़ कर |
टी.टी. अकड़े | टी.टी. अकड़े | ||
कितना लूटा | कितना लूटा | ||
− | और खसोटा | + | और खसोटा |
'सब चलता' | 'सब चलता' | ||
− | कह रहा ज़माना! | + | कह रहा ज़माना! |
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13:53, 30 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण
एक ट्रैक पर
रेल ज़िंदगी
कब तक?
कितना सफ़र सुहाना
धक्का-मुक्की
भीड़-भड़क्का
बात-बात पर
चौका-छक्का
चोट किसी को
लेकिन किसकी
ख़त्म कहानी
किसने जाना
एक आदमी
दस मन अंडी
लदी हुई है
पूरी मंडी
किसे पता है
कहाँ लिखा है
किसके खाते
आबोदाना
बिना टिकट
छुन्ना को पकड़े
रौब झाड़ कर
टी.टी. अकड़े
कितना लूटा
और खसोटा
'सब चलता'
कह रहा ज़माना!