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"तुम हे साजन! / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर

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मँइ गुनहगार के आधार हौ तुम हे साजन!
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मैं गुनाहगार के आधार हौ तुम हे साजन !
निपटि गँवार के पियार हौ तुम हे साजन!
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निपटि गँवार के पियार हौ तुम हे साजन !
 
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घास छीलति उयि चउमासन के ख्वादति खन,
 
घास छीलति उयि चउमासन के ख्वादति खन,
तुम सगबगाइ क हमरी अलँग ताक्यउ साजन!
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तुम सगबगाइ<ref>सकपकाना, संकोच करना</ref> क हमरी अलँग ताक्यउ साजन !
 
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हायि हमहूँ तउ सिसियाइ मुसक्याइ दिहन !
हायि हमहूँ तौ सिसियाइ के मुसक्याइ दिहेन,
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बसि हँसाहुसी मुहब्बति मँ बँधि गयन साजन !
बसि हँसाहुसी मोहब्बति मा बँधि गयन साजन!
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आदि कई-कई कि सोचि सोचि क बिगरी बातै,
 
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अपनिहे चूक करेजे है सालति साजन।
आदि कइ-कइ कि सोचि सोचि क बिगरी बातै,
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तुम कहे रहउ कि सुमिरेउ गाढ़े सँकरे मा,
अपनिहे चूक करेजे मा है सालति साजन!
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जापु तुमरइ जपित है तुम कहाँ छिपेउ साजन !
 
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तुम कहे रहेउ कि सुमिरेउ गाढ़े सकरे मा,
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जापु तुमरै जपित है तुम कहाँ छिपेउ साजन!  
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बइठि खरिहाने मा ताकिति है तउनें गल्ली,
 
बइठि खरिहाने मा ताकिति है तउनें गल्ली,
जहाँ तुम लौटि के आवै क कहि गयौ साजन!
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जहाँ तुम लौटि आवै क कहि गयौ साजन।
 
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हन्नी<ref>सप्तर्षि तारा मंडल का समूह, हिरन</ref> उयि आई जुँधय्यउ<ref>चन्द्रमा</ref> अथयी<ref>डूबना, समाप्त होना</ref> छठिवाली
हन्नी उइ आई जुँधय्यउ अथयी छठिवाली,
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टस ते मस तुम न भयउ कहाँ खपि गयौ साजन?
टस ते मस तुम न भयउ कहाँ खपि गयौ साजन?  
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कूचि कयि आगि करेजे मँ हायि बिरहा की
 
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कैस कपूर की तना ति उड़ि गयौ साजन!
कूचि कयि आगि करेजे मा हायि बिरहा की,
+
याक झलकिउ जो कहूँ तुम दिखायि भरि देतिउ
कैस कपूर की तिना ति उड़ि गयउ साजन!
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अपनी उढ़पी मँ तुमका फाँसि कै राखिति साजन।
 
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याक झलकिउ जो कहूँ तुम दिखायि भरि देतिउ,
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अपनी ओढ़नी मा तुमका फाँसि कै राखिति साजन!
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__बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’
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सबद-अरथ:  सगबगाइ – सकपकाब यानी संकोच करब
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          हन्नी – सप्तर्षि तारा मंडल कै समूह, हिरन
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          जुँधय्यउ – चंद्रमा
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          अथयी – डूबब, समाप्त हुअब या तिरोहित हुअब।
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16:33, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

मैं गुनाहगार के आधार हौ तुम हे साजन !
निपटि गँवार के पियार हौ तुम हे साजन !
घास छीलति उयि चउमासन के ख्वादति खन,
तुम सगबगाइ<ref>सकपकाना, संकोच करना</ref> क हमरी अलँग ताक्यउ साजन !
हायि हमहूँ तउ सिसियाइ क मुसक्याइ दिहन !
बसि हँसाहुसी मुहब्बति मँ बँधि गयन साजन !
आदि कई-कई कि सोचि सोचि क बिगरी बातै,
अपनिहे चूक करेजे म है सालति साजन।
तुम कहे रहउ कि सुमिरेउ गाढ़े सँकरे मा,
जापु तुमरइ जपित है तुम कहाँ छिपेउ साजन !
बइठि खरिहाने मा ताकिति है तउनें गल्ली,
जहाँ तुम लौटि क आवै क कहि गयौ साजन।
हन्नी<ref>सप्तर्षि तारा मंडल का समूह, हिरन</ref> उयि आई जुँधय्यउ<ref>चन्द्रमा</ref> अथयी<ref>डूबना, समाप्त होना</ref> छठिवाली
टस ते मस तुम न भयउ कहाँ खपि गयौ साजन?
कूचि कयि आगि करेजे मँ हायि बिरहा की
कैस कपूर की तना ति उड़ि गयौ साजन!
याक झलकिउ जो कहूँ तुम दिखायि भरि देतिउ
अपनी उढ़पी मँ तुमका फाँसि कै राखिति साजन।

शब्दार्थ
<references/>