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"तुम्हें देख कर / भास्करानन्द झा भास्कर" के अवतरणों में अंतर
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तुम्हें देख़ कर
मिलती हैं
बहुत सारी खुशियां
मुझे
नैसर्गिक आनन्द…
जिन्दगी को
समझने,
परखने की
आह्लादित अनुभूति…
झंकृत हो जाते हैं
हॄदय के तार,
तुम्हारे सौम्य
सुन्दर व्यवहार से...
तुम्हारे “वकवास” में भी
छुपे होते हैं
कई अर्थपूर्ण भाव
गोता लगा कर
तुझ में ही
सुन, समझ लेता है
मेरा अन्तर्मन
जिन्दगी की बड़ी सच्चाई…