भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काळ / गोरधनसिंह शेखवत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatRajasthan}}
+
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
आभै रै काळजै में
 
आभै रै काळजै में

20:42, 29 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

आभै रै काळजै में
कठै सिवांत
च्यारूं-मेर फीकै मूंडै रा
उणमणां बादळ
अळसायोडी उडीक रै माथै
उगण लाग्या
मौत री छिब रा
अणचावा अैनाण

अै कांई हाल
देखो जठै
पेट रा हाफल्योड़ा सवाल
काळ
फगत लूंठो काळ
दाबतो आवै
धरती री मरोड़
मिनख री मरजादा
भूख
सिरैनाव भूख
कळपावै इतियास री कूख

मिनख
मिनख सारू
मौत री विगत बणावै
हंसते आंगणै में
मौत रो बतूळियो
झाडू़ लगावै

स्यात
सालीना हुवै अैड़ो नाटक
मिनखपणै री
गळफांसी रो
कंठा रो लोय
भाप बणनै
सूखी रेत नै तपा देवै
जळ-बळती भोमरा
आसुवां नै
हथेळ्यां में राख'र
मिनखपणौ
चोफेर घूमै

मौत रै पसवाड़ै
ताकत रा खांधा सूं
पसीनो चुवै
पिछोला गावता खेत
कुदरत रै साम्है
अणचीती बाता सारू
आंसू टळकावै

काळ
थारै कोप नै
परै टाळ
उगण दै
सपना साथै भागता
कोडीला हरफां नै
काळ
मत निबळी कर भासा नै
थोड़ी बदळ थारी चाल

काळ
मिनख नै मत कर मोता
मत भर तू
खून सूं अै घर
नी कर पड़छीयां नै लाम्बी
मत तोड़
उगतै सुरज री दांत

काळ
थारी लगाम नै
थोड़ी थांम
मत उड़ा जूण रा फरचटा
फेरूं सुगन ले
थारै इतियास नै
चेतो राख'र
सांभ।