"सन्ध्या-संकल्प / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
सागर-हाथों | सागर-हाथों | ||
− | अम्बा तिरमिरायी को : | + | अम्बा तिरमिरायी को: |
रुको साँस-भर, | रुको साँस-भर, | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
फिर मैं यह पूजा-क्षण | फिर मैं यह पूजा-क्षण | ||
− | तुम को दे | + | तुम को दे दूँगा। |
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
पहले भी पहचाना है | पहले भी पहचाना है | ||
− | इस लिए साँझ को नश्वरता से नहीं | + | इस लिए साँझ को नश्वरता से नहीं बांधता। |
किन्तु दान भी है अमोघ, अनिवार्य, | किन्तु दान भी है अमोघ, अनिवार्य, | ||
− | धर्म : | + | धर्म: |
यह लोकालय में | यह लोकालय में | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
धीरे-धीरे जान रहा हूँ | धीरे-धीरे जान रहा हूँ | ||
− | (अनुभव के सोपान !) | + | (अनुभव के सोपान!) |
और | और | ||
− | दान वह मेरा एक तुम्हीं को | + | दान वह मेरा एक तुम्हीं को है। |
− | यह एकोन्मुख | + | यह एकोन्मुख तिरोभाव— |
− | इतना-भर मेरा एकान्त निजी | + | इतना-भर मेरा एकान्त निजी है— |
− | मेरा अर्जित : | + | मेरा अर्जित: |
वही दे रहा हूँ | वही दे रहा हूँ | ||
− | ओ मेरे राग-सत्य ! | + | ओ मेरे राग-सत्य! |
मैं | मैं | ||
− | + | तुम्हें। | |
पंक्ति 65: | पंक्ति 65: | ||
ऐसा है बहुत | ऐसा है बहुत | ||
− | जिसे मैं दिया | + | जिसे मैं दिया गया। |
यह इतना | यह इतना | ||
− | मैंने | + | मैंने दिया। |
अल्प यह लय-क्षण | अल्प यह लय-क्षण | ||
− | मैंने | + | मैंने जिया। |
− | आह, यह विस्मय ! | + | आह, यह विस्मय! |
− | उसे तुम्हें दे सकता हूँ | + | उसे तुम्हें दे सकता हूँ मैं। |
− | उसे | + | उसे दिया। |
इस पूजा-क्षण में | इस पूजा-क्षण में | ||
पंक्ति 87: | पंक्ति 87: | ||
सहज, स्वतः प्रेरित | सहज, स्वतः प्रेरित | ||
− | मैंने संकल्प | + | मैंने संकल्प किया। |
+ | |||
+ | ---- | ||
६ मार्च १९६३ | ६ मार्च १९६३ |
08:14, 8 मार्च 2008 का अवतरण
यह सूरज का जपा-फूल
नैवेद्य चढ़ चला
सागर-हाथों
अम्बा तिरमिरायी को:
रुको साँस-भर,
फिर मैं यह पूजा-क्षण
तुम को दे दूँगा।
क्षण अमोघ है, इतना मैंने
पहले भी पहचाना है
इस लिए साँझ को नश्वरता से नहीं बांधता।
किन्तु दान भी है अमोघ, अनिवार्य,
धर्म:
यह लोकालय में
धीरे-धीरे जान रहा हूँ
(अनुभव के सोपान!)
और
दान वह मेरा एक तुम्हीं को है।
यह एकोन्मुख तिरोभाव—
इतना-भर मेरा एकान्त निजी है—
मेरा अर्जित:
वही दे रहा हूँ
ओ मेरे राग-सत्य!
मैं
तुम्हें।
ऐसे तो हैं अनेक
जिन के द्वारा
मैं जिया गया;
ऐसा है बहुत
जिसे मैं दिया गया।
यह इतना
मैंने दिया।
अल्प यह लय-क्षण
मैंने जिया।
आह, यह विस्मय!
उसे तुम्हें दे सकता हूँ मैं।
उसे दिया।
इस पूजा-क्षण में
सहज, स्वतः प्रेरित
मैंने संकल्प किया।
६ मार्च १९६३