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मानो धरे लकीर
 
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रिरियाता कुत्ता यह
 
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पूँछ लड़खड़ाती टाँगों के बीच दबाये ।
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दुर्गम, निर्मम, अन्तहीन
 
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उस ठण्डे पारावार से !
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उस ठण्डे पारावार से!

09:32, 17 मार्च 2008 का अवतरण

चाबुक खाये

भागा जाता

सागर-तीरे

मुँह लटकाये

मानो धरे लकीर

जमे खारे झागों की—

रिरियाता कुत्ता यह

पूँछ लड़खड़ाती टांगों के बीच दबाये।


कटा हुआ

जाने-पहचाने सब कुछ से

इस सूखी तपती रेती के विस्तार से,

और अजाने-अनपहचाने सब से

दुर्गम, निर्मम, अन्तहीन

उस ठण्डे पारावार से!