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"नानी का संदूक / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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15:18, 29 मार्च 2015 का अवतरण

नानी का सन्दूक निराला ,
  हुआ धुएं से बेहद काला।
 पीछे से वह खुल जाता है ,
   आगे लटका रहता ताला।
   चन्दन चौकी देखी उसमें ,
    बेसन लौकी देखी उसमें।
बाली जौ की देखी उसमें ,
    खाली जगहों में है ताला,
  नानी का सन्दूक निराला।
     शीशी में गंगा जल उसमें,
 चींटी झींगुर खटमल उसमें।
     ताम्र पत्र तुलसी दल उसमें ,
  जगन्नाथ का भात उबाला।
    नानी का सन्दूक निराला।
   मिलता उसमें कागज कोरा ,
    मिलती उसमें सूई व डोरा।
   मिलता उसमें सीप कटोरा,
    मिलती उसमें कौड़ी माला।
    नानी का सन्दूक निराला
     जब लड़कों को खाँसी आती ,
    आती उसमें निकल दवाई।
     कभी ढूँढने से मिल जाता ,
    पेड़ा , बर्फी ,गट्टा लाई।
    जो कुछ खाकर मरना चाहे ,
     ढूंढे उसमें जहर धतूरा।
     डर है चोर न उसे चुरा लें ,
     समझो उसे म्यूजियम पूरा।
उसको छोड़ न लेगी नानी ,
दिल्ली का सिंहासन आला।
 नानी का सन्दूक निराला।