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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
हमना तुम खाँ बदी विचारैं।
बचन अगारूँ हारैं।
सिम्भू कऔ कइलास बरफ सौ।
सिर पै गंगा धारें।
बाहर कड़े फेर नई मुरकत
ज्यों गज दन्त निकारैं।
वाँहन गही सो छूटत नईयाँ
हाड़ल कैसी डारें।
सत सैं ईसुर हरत सुनी ना,
सती सहत है मारैं।