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तुम (हाइकु) / अशोक कुमार शुक्ला
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11:30, 4 मई 2015
गुनगुनी धूप सी
माह पूस की
(4)
तुम हंसे तो
चमकी बिजली सी
बादर झरे
</poem>
Dr. ashok shukla
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