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गरमी में प्रात:काल / हरिवंशराय बच्चन
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04:09, 14 मई 2015
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<poem>
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
कुसुमायुध का शर ही मानो
मेरे अंतर में पैठ गया!
गरमी में प्रात:काल पवन
कलियों को चूम सिहरता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
गरमी में प्रात:काल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
</poem>
Lalit Kumar
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