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"टकटकाटक / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर

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12:22, 9 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

कुछ नरम खरगोश के जैसे
कुछ हाथी के जैसे होते।
कुछ तो बड़े भयानक होते
कुछ प्यारी मम्मी से होते।

लगता जैसे बैठ पीठ पर
घोड़ों की आते हैं ये तो।
आंखों के जगते ही जाने
कहां-कहां जाते हैं ये तो।

कभी ये चलते टकटकाटक
और दौड़ते कभी टपाटप।
कभी हंसाते, कभी रुलाते
कभी कराते काम खटाखट।

लगता जैसे खेल खिलाते
आते हैं जीवन में अपने।
कुछ भी हो पर हमें जरूरी
लगते हैं जी अपने सपने।