भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जल्दी बताओ / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:25, 9 जुलाई 2015 के समय का अवतरण
क्यों लगता है मुझे आकाश
कि यह जो सजाए बैठे हो इन्द्रधनुष
अपने माथे पर
चुराया है तुमने मेरे माथे से।
दो मेरा इन्द्रधनुष वापिस
नहीं तो छीन लूंगा मैं
तुम्हारी बहुत सी चीज़ें।
पर कैसे छीनूं?
मेरे हाथ तो बहुत छोटे हैं अभी
और तारे बहुत ऊंचे हैं तुम्हारे!
तुम्हारे बादल भी तो बहुत दूर हैं न मुझसे!
अब तुम्हीं बताओ आकाश
मैं क्या करूं?
जल्दी बताओ, नहीं तो
हो जाऊंगा कुट्टी
कुछ भी दोगे
तब भी नहीं मानूंगा जल्दी।
पर तुम रोओगे
तो तुम्हारी बूंदों से मैं
बहुत प्यार करूंगा।
बहुत प्यार करूंगा आकाश
जैसे रोने पर मेरे
करती है मां।