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"बाबा रे! / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर

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11:36, 14 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

ग़ुस्सा रहता हाथ भर।
मैडम जी की नाक पर।
बाबा रे! बाबा रे!

चश्मे से हैं देखतीं
सबके कान उमेठतीं,
चुप कर देतीं डाँट कर।
बाबा रे! बाबा रे!

हर दिन उनकी क्लास में--
जाना पड़ता है हमें,
पूरा ‘लेसन’ याद कर।
बाबा रे! बाबा रे!