भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुसीबत के समय दिल सब्र के साये में रहता है / सिया सचदेव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=अभी इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:38, 22 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

मुसीबत के समय दिल सब्र के साये में रहता है
घने बादल का सीना चीर के सूरज निकलता है

कोई उम्मीद बंधती है तो बंध कर टूट जाती है
नतीजा फिर वहीं तन्हाइयों में दिन गुज़रता है

हमें खुद मंज़िल ए मक़सूद तक लाती है हर मुश्किल
के हर रस्ता हमारे पावँ छू कर साथ चलता है

मेरा ये दिल मेरी धड़कन मेरी साँसें मेरा जीवन
तुम्हारे नाम का ये विर्द सुब्ह ओ शाम करता है

कभी चाहत कभी नफरत कभी गुस्सा कभी राहत
मिज़ाज ए यार तो तेवर नए हर दिन बदलता है

वहीं गलिया वहीं कूचे वहीं गुड़िया वही झूले
जो बचपन याद आ जाए तो दिल अब भी मचलता है

ये तितली फूल जुगनू और ये गाता हुआ दरिया
जहाँ में जो भी चलता है तेरी मर्ज़ी से चलता है

किसी का कोई भी अपना नहीं है ये भी सच है पर
सिया मैं राम की हूँ राम मेरे साथ रहता है