"परिचय / सनेस / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:12, 4 अगस्त 2015 के समय का अवतरण
हम ओहि माटिक मूर्ति
वर्ष पाँचम, धूलि-धूसर शंकरक सुनि बोल
‘वर्णयामि जगत्त्रयम् एखनहु जगतमे घोल
किन्तु होइछ नहि ओकर पुनि पूर्ति, हम ओहि माटिक, मूर्ति॥1॥
हम वैह व्यासक पूत
जनमितहिँ जे कैल व्याख्या आगमक परिपूत
पिता धरि नहि रोकि सकला अद्भुते अवधूत
किन्तु ओ शुक उड़ि चलल अजगूत! हम वैह व्यासक पूत॥2॥
हम सुमति-कोरक लाल
दूध मुहमे, कंठमे तोतर वचन, अति बाल
पीबि अपमानक हलाहल अमर धु्रव सभ काल
नहि मुदा अछि प्रज्वलित ओ ज्वाल, हम सुमति-कोरक लाल॥3॥
हमही भरतशिशु-वीर
सिंहकेर गनि दाँत सीखल अंकगणितक पाठ
जकर नामहिसँ एखन धरि भारतक अछि ठाठ
किन्तु भयसँ किएक हृदय अधीर? हमही भरत-शिशु वीर॥4॥
हम राम अवध-किशोर
मुनिक मख रखबारि करइत हनल दनुज दुरंत
राज - सुख बनवास - दुख समतुल गनल प्रणवंत
फूल-कोमल अथच वज्र - कठोर, हम राम अवध-किशोर॥5॥
हम नन्द - नन्दन कान्ह
गोकुलक रक्षा कयल वृन्दावनहुकेँ धन्य
कंस माथुर हनल सहजहिँ जनक जननी जन्य
बाँसुरी सुर संग गीता गान, हम नन्द-नन्दन कान्ह॥6॥
शिष्य अनुशसित हमहि एकलव्य
गुरुक आशिष शिखा धय, निज श्रम बलहि बन घोर
धनुर्विद्या अर्जुनहुँसँ अधिक अर्जल जोर
अगुलिक गुरु-दक्षिणा नव द्रव्य, शिष्य अनुशसित हमहि एकलव्य॥7॥
हम द्रविड शंकर बाल
शैशवहिमे घोर धारक बीच लैत झकोर
मायसँ हम लेल संन्यासक निदेश निहोर
धाम चारू संस्कृति दिग्पाल, हम द्रविड शंकर बाल॥8॥
हम बाल बादल वीर
जखन चित्तैरक चिता जौहरक उगिलय आगि
तखन प्रानक समिध चढ़बी देश गौरव जागि
मरि अमर बनइछ कोना रनधीर, हम बाल बादल वीर॥9॥
हम सिक्ख-शिशु सुकुमार
गुरुक मर्यादा गुनल, नहि गनल प्राणक मोल
आइ धरि बाँचल शिखा, नहि बचल बरु तनु लोल
आइ नहि ओ तेज अछि साकार, हम सिक्ख-शिशु सुकुमार॥10॥
हम जन्म-भूमिक दान
छी स्वतन्त्र परन्तु परतन्त्रे हमर विज्ञान
वैह बनबे कोना? भाषा वेशहुक नहि मान
हन्त! हम मिथिलाक शिशु सन्तान, हम जन्म-भूमिक दान॥11॥
हम भावि युग निर्माण
यदपि लघु बंकुलहु अंकुर तनत तरु उद्यान
किरण कण अरुणोदयक पुनि भविष्यक दिनमान
हम अणु प्रयोग प्रमाण, हम भावि युग निर्माण॥12॥
जन्मभूमिकमाटि माथ चढ़ाय, गढब पुनि इतिहास सोन मढ़ाय
जखन महिमा अपन माटिक जगत रहले गाबि
दीप-दर्पण वृद्ध वाचस्पति, अयाचिक साग
उदयनक गर्वोक्ति, विद्यापतिक चपकन - पाग
अपन परिचय पात देब जनाय, जन्मभूमिक माटि माथ चढ़ाय॥13॥