भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खिलता हुआ कनेर / त्रिलोक सिंह ठकुरेला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:04, 9 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण

बहुधा मुझ से बातें करता
खिलता हुआ कनेर,
अभ्यागत बनने वाले हैं
शुभ दिन देर सवेर,

आग उगलते दिवस जेठ के
सदा नहीं रहने,
झंझाओं के गर्म थपेड़े
सदा नहीं सहने,

आ जायेंगे दिन असाढ़ के
मन के पपीहा टेर,

आशा की पुरवाई होगी
सब के आँगन में,
सुख की नव-कोंपल फूटेंगी
सब के ही मन में,

भावों के मोती बरसेंगे
लग जायेंगे ढेर