भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पर्यावरण-1 / राजा खुगशाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजा खुगशाल |अनुवादक= |संग्रह=पहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
  
 
उसने देखा पृथ्वी की चिन्ता में
 
उसने देखा पृथ्वी की चिन्ता में
भाप उठने लगी है समुद्रोंसे
+
भाप उठने लगी है समुद्रों से
 
धरती से भू-उपग्रहों की ओर
 
धरती से भू-उपग्रहों की ओर
 
पहले कुछ पत्ते उड़े, फिर थोड़े से लोग
 
पहले कुछ पत्ते उड़े, फिर थोड़े से लोग

14:33, 12 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण

वह जैसा था
वैसा ही गूँजता रहा हवा में
उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया
और न इसके लिए उसने
किसी तरह का कोई वातावरण रचा

वह उठा
और चुपचाप चला गया सभा-कक्ष से
सड़क पर बस की प्रतीक्षा में उसने पाया
अमलतास का दरख़्त नीला
और आसमान हरा

उसने देखा पृथ्वी की चिन्ता में
भाप उठने लगी है समुद्रों से
धरती से भू-उपग्रहों की ओर
पहले कुछ पत्ते उड़े, फिर थोड़े से लोग
फिर बारिश में घुलने लगा
वक़्त का बुझा हुआ चेहरा ।