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"मीठा काँदा / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर

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02:00, 10 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

बचपन में
मैंने देखा
माँ ने
बोरे में भरकर
अलगनी की ओट में
दीवार के सहारे
खूँटी पर
बाँध रखे थे
देशी काँदे,
माँ भरी दोपहरी में
मुझे फोड़कर देती थी मुट्ठी से
अपने हाथों बनी
ज्वार की रोटी खाने
अब नहीं है वह बचपन
अब वह अलगनी भी नहीं है
अब नहीं है वह बोरा
अब काँदे में वैसी मिठास भी कहाँ है।