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"मैंने कहा / रामनरेश पाठक" के अवतरणों में अंतर

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'गीत, मेरा कोई अपना नहीं.'
 
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'क्या? भुला तेरे मन का हिरना कहीं.'
 
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'नहीं, गंध परि आई कभी अंगना नहीं.'
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मैंने डूबती हुई सूनी बदली से कहा-  
 
मैंने डूबती हुई सूनी बदली से कहा-  

00:39, 3 नवम्बर 2015 का अवतरण

मैंने फागुन की हवा से कहा-
'वंशी, मेरा कोई अपना नहीं,'
'क्या? टूटा तुम्हारा कोई सपना कहीं,'
'नहीं, बंधा मेरे हाथ कोई कंगना नहीं.'

मैंने हरसिंगार के फूलों से कहा-
'गीत, मेरा कोई अपना नहीं.'
'क्या? भुला तेरे मन का हिरना कहीं.'
'नहीं, गंध परी आई कभी अंगना नहीं.'

मैंने डूबती हुई सूनी बदली से कहा-
'विराम मेरा कोई अपना नहीं.'
'क्या? डूबा तेरे नभ का वो चंदा कहीं.'
'नहीं, उगा मेरे नभ में कोई चंदा नहीं.'