भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कमाल की औरतें १७ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=शैलजा पाठक
 
|रचनाकार=शैलजा पाठक
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी / शैलजा पाठक
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

14:57, 21 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

ऐ लड़की!
खाना बना
बिस्तर लगा
पानी पिला
कपड़े धो
बर्तन मांज
ओढऩी ओढ़
आवाज़ नीची
नजर नीची
हंस मत
बाहर मत जा
पर्दा लगा

पिंजरे में बंद तोता
बेचैन होता है
प्याली भर पानी में अपनी चोंच धोता है
उसकी लाल-गोल आंखों में आग है

उसके पंख में आसमानी ख्वाब है
लड़की एक इंकलाबी गाना गाती है
ƒघर के दरवाज़े और सख्ती से बंद हो जाते हैं
लड़की तोते की और देख कर मुस्कराती है
अपने हक की लड़ाई की पहली आवाज़ पर
चरमरा जाती है पुरानी बेढब धारणाएं

लड़की प्रेम करेगी...पहाड़ चढ़ेगी
आंधियों से टकराएगी अपने हिस्से का जिएगी
अपने होने का परचम लहराएगी

लड़की अपनी ज़िन्दगी की जंग
अपने बल पर जीत जायेगी
तोता आकाश में है अब
पिंजरा खाली तेज़ चक्कर काटता
टूटा पड़ा है जमीन पर।