"हस्तक्षेप / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Pradeepmishra (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Pradeepmishra (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | ''' हस्तक्षेप ''' | ||
+ | |||
+ | अंधेरी रात को भोर कहा जा रहा है | ||
+ | जंगल को विकसित नगर | ||
+ | मक्तल को हरे चारे का बाड़ा | ||
+ | नाले को हर-हराती नदी | ||
+ | |||
+ | मैं सच कह रहा हूँ | ||
+ | जिस वक्त को सुबह घोषित किया गया है | ||
+ | और आप निकल रहे हैं सैर पर | ||
+ | वह आधी रात का वक्त है | ||
+ | |||
+ | जलते हुए लट्टू बेहतरीन विकल्प हैं सूर्य के | ||
+ | पेड़-पौधे-फूल और बाग-बगीचे | ||
+ | बैठकों और कार्यालयों में सजावट की चीजें | ||
+ | कम्प्युटर के स्क्रीन पर चमकती | ||
+ | सोलह मीलियन रंगोंवाली बहुरंगी दुनिया में | ||
+ | आप सबका रंगरंगीला घर है | ||
+ | खेत की फसलों से ज्यादा फायदेमंद | ||
+ | कांक्रीटों की सुदर्शन संरंचनाएं हैं | ||
+ | जंगल आदिवासी किसान और भुखमरे | ||
+ | इस प्रगतिशील समय के चेहरे पर दाग हैं | ||
+ | इनको नष्ट हो जाना चाहिए | ||
+ | आप इन मुद्दों के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर चुके हैं | ||
+ | |||
+ | अब कोई सिरफिरा पूछ ले | ||
+ | बिजली गुल होते ही इस सूर्य के विकल्प का क्या होगा | ||
+ | कम्प्युटर में वायरस लग जाएगा | ||
+ | तब कैसी लगेगी आपकी बहुरंगी दुनिया | ||
+ | आपके भूख से किस तरह पेश आएंगे कांक्रीट | ||
+ | जंगल नहीं होंगे तो कटेगा कौन | ||
+ | आदिवासी नहीं होंगे तो विकास के पैमाने का क्या होगा | ||
+ | किसान नहीं होंगे तो आत्महत्या कौन करेगा | ||
+ | भुखमरे नहीं होंगे तो किस के नाम पर मचेगी लूट | ||
+ | |||
+ | तो अकबका जाऐंगे आप | ||
+ | कलम उठाऐंगे अपना हस्ताक्षर काटने के लिए | ||
+ | लेकिन एक और हस्ताक्षर हो जाएगा | ||
+ | क्योंकि कलम अब लिखने के काम नहीं आती | ||
+ | |||
+ | हमारे समय के सूत्र वाक्य हैं | ||
+ | एक सच्चा देशभक्त दर्शकभर होता है | ||
+ | एक सच्चा नागरिक कभी सवाल नहीं करता | ||
+ | एक सच्चे मनुष्य की नियति खटने और मरने की है | ||
+ | |||
+ | जो जैसा चल रहा है चलने दें | ||
+ | आपका एक हस्तक्षेप देश को वर्षों पीछे ढकेल देगा। | ||
</poem> | </poem> |
16:37, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
हस्तक्षेप
अंधेरी रात को भोर कहा जा रहा है
जंगल को विकसित नगर
मक्तल को हरे चारे का बाड़ा
नाले को हर-हराती नदी
मैं सच कह रहा हूँ
जिस वक्त को सुबह घोषित किया गया है
और आप निकल रहे हैं सैर पर
वह आधी रात का वक्त है
जलते हुए लट्टू बेहतरीन विकल्प हैं सूर्य के
पेड़-पौधे-फूल और बाग-बगीचे
बैठकों और कार्यालयों में सजावट की चीजें
कम्प्युटर के स्क्रीन पर चमकती
सोलह मीलियन रंगोंवाली बहुरंगी दुनिया में
आप सबका रंगरंगीला घर है
खेत की फसलों से ज्यादा फायदेमंद
कांक्रीटों की सुदर्शन संरंचनाएं हैं
जंगल आदिवासी किसान और भुखमरे
इस प्रगतिशील समय के चेहरे पर दाग हैं
इनको नष्ट हो जाना चाहिए
आप इन मुद्दों के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर चुके हैं
अब कोई सिरफिरा पूछ ले
बिजली गुल होते ही इस सूर्य के विकल्प का क्या होगा
कम्प्युटर में वायरस लग जाएगा
तब कैसी लगेगी आपकी बहुरंगी दुनिया
आपके भूख से किस तरह पेश आएंगे कांक्रीट
जंगल नहीं होंगे तो कटेगा कौन
आदिवासी नहीं होंगे तो विकास के पैमाने का क्या होगा
किसान नहीं होंगे तो आत्महत्या कौन करेगा
भुखमरे नहीं होंगे तो किस के नाम पर मचेगी लूट
तो अकबका जाऐंगे आप
कलम उठाऐंगे अपना हस्ताक्षर काटने के लिए
लेकिन एक और हस्ताक्षर हो जाएगा
क्योंकि कलम अब लिखने के काम नहीं आती
हमारे समय के सूत्र वाक्य हैं
एक सच्चा देशभक्त दर्शकभर होता है
एक सच्चा नागरिक कभी सवाल नहीं करता
एक सच्चे मनुष्य की नियति खटने और मरने की है
जो जैसा चल रहा है चलने दें
आपका एक हस्तक्षेप देश को वर्षों पीछे ढकेल देगा।