"दीवाली / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | गिड़गिड़ाती गृहस्थी | ||
+ | पूजन के आडम्बर से | ||
+ | उकताए हुए लक्ष्मी-गणेश | ||
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+ | कविता के बिम्बों में इतनी गड़बड़ कि | ||
+ | लिखी जा रही हो दीवाली के उत्सव पर | ||
+ | बन जाए शोकगीत | ||
+ | पढ़ी जा रही हो बेहतर दुनिया के लिए | ||
+ | नज़र आ रही हो | ||
+ | जली-उज़ड़ी-तहस-नहस दुनिया | ||
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+ | पंचाँग के अनुसार आज दिवाली है | ||
+ | और अमावस्या भी | ||
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+ | जब बीत जाएगी अमावस्या | ||
+ | तब लिखूँगा मन की कविता | ||
+ | दीपकों से सजाऊंगा आंगन-द्वार | ||
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+ | दीपकों में | ||
+ | तेल की जगह पसीने भरे होंगे | ||
+ | और बाती की जगह हौसले जल रहे होंगे | ||
+ | इस रोशनी में दिखाई देंगे | ||
+ | दिप् दिपाते हुए चेहरे | ||
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+ | जब चेहरे दिप् दिपाते हों | ||
+ | भले ही अमावस्या हो | ||
+ | दिवाली आती है | ||
+ | और मनती भी है धूमधाम से । | ||
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16:44, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
दीवाली
हर ड्योढ़ी और ओटलों पर
ज़गमगाते दीपों की क़तार
फिर भी अँधेरा गहरा और भयानक
बच्चों के हाथों में फुलझडिय़ाँ
बुझी-बुझी सी
पत्नी के हाथ में दीपक जैसे
गिड़गिड़ाती गृहस्थी
पूजन के आडम्बर से
उकताए हुए लक्ष्मी-गणेश
कविता के बिम्बों में इतनी गड़बड़ कि
लिखी जा रही हो दीवाली के उत्सव पर
बन जाए शोकगीत
पढ़ी जा रही हो बेहतर दुनिया के लिए
नज़र आ रही हो
जली-उज़ड़ी-तहस-नहस दुनिया
पंचाँग के अनुसार आज दिवाली है
और अमावस्या भी
जब बीत जाएगी अमावस्या
तब लिखूँगा मन की कविता
दीपकों से सजाऊंगा आंगन-द्वार
दीपकों में
तेल की जगह पसीने भरे होंगे
और बाती की जगह हौसले जल रहे होंगे
इस रोशनी में दिखाई देंगे
दिप् दिपाते हुए चेहरे
जब चेहरे दिप् दिपाते हों
भले ही अमावस्या हो
दिवाली आती है
और मनती भी है धूमधाम से ।