भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शब-बरात-2 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("शब-बरात-2 / नज़ीर अकबराबादी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatNazm}}
 
{{KKCatNazm}}
<poem>
+
<poem>आलम के बीच जिस घड़ी आती है शबबरात।
आलम के बीच जिस घड़ी आती है शब-बरात ।
+
क्या-क्या जहूरे<ref>प्रकट करना</ref> नूर<ref>प्रकाश</ref> दिखाती है शब-बरात॥
क्या-क्या जहूरे<ref>प्रकट करना</ref> नूर<ref>प्रकाश</ref> दिखाती है शब-बरात ।।
+
देखे हैं बन्दिगी<ref>पूजा, इबादत</ref> में जिसे जागता तो फिर।
 +
फूली नहीं बदन में समाती है शब-बरात॥
 +
रोशन हैं दिल जिन्होंके इबादत के नूर से।
 +
उनको तमाम रात जगाती है शब-बरात॥
  
देखे है बन्दिगी<ref>पूजा, इबादत</ref> में जिसे जागता तो फिर
+
बख़्शिश<ref>खैरात</ref> खु़दा की राह में करते हैं जो मुहिब<ref>प्रेमी</ref>
फूली नहीं बदन में समाती है शब-बरात ।।
+
बरकत<ref>कल्याण</ref> हमेशा उनकी बढ़ाती है शब-बरात॥
  
रोशन हैं दिल जिन्हों के इबादत के नूर से ।
+
ख़ालिक<ref>ईश्वर</ref> क बन्दिगी करो और नेकयों के दम।
उनको तमाम रात जगाती है शब-बरात ।।
+
यह बात हर किसी को सुनाती है शब-बरात॥
  
बख्शिश<ref>खैरात</ref> ख़ुदा की राह में करते हैं जो मुहिब<ref>प्रेमी</ref> ।
+
ग़ाफिल<ref>बेखबर</ref> न बन्दिगी से हो और खै़र से ज़रा।
बरकत<ref>कल्याण</ref> हमेशा उनकी बढ़ाती है शब-बरात ।।
+
हर लहज़ा<ref>हर समय</ref> यह सभों को जताती है शब-बरात॥
  
ख़ालिक<ref>ईश्वर</ref> की बन्दिगी करो और नेकियों के दम ।
+
हुस्ने अमल<ref>शुभ कार्य</ref> करके जो भला आक़िबत<ref>यमलोक</ref> में हो।
यह बात हर किसी को सुनाती है शब-बरात ।।
+
सबको यह नेक राह बताती है शब-बरात॥
  
गाफ़िल<ref>बेख़बर</ref> न बन्दिगी से हो और ख़ैर से ज़रा ।
+
लेकर हमीर हमज़ा के हर बार नाम को।
हर लहज़ा<ref>हर समय</ref> ये सभों को जताती है शब-बरात ।।
+
ख़ल्क़त<ref>संसार</ref> को उनकी याद दिलाती है शब-बरात॥
 
+
क्या क्या मैं इस शब-बरात की खूबी कहूं ”नज़ीर“।
हुस्ने अमल<ref>शुभ कार्य</ref> करके जो भला आक़िबत<ref>यमलोक</ref> में हो ।
+
लाखों तरह की खू़बियां लाती हैं शब-बरात॥
सबको यह नेक राह बताती है शब-बरात ।।
+
 
+
लेकर हमीर हमज़ा के हर बार नाम को ।
+
ख़ल्क़त<ref>संसार</ref> को उनकी याद दिलाती है शब-बरात ।।
+
        क्या-क्या मैं इस शब-बरात की खूंबी कहूँ ’नज़ीर’ ।
+
        लाखों तरह की ख़ूबियाँ लाती है शब-बरात ।।
+
 
</poem>
 
</poem>
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}

13:10, 19 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

आलम के बीच जिस घड़ी आती है शबबरात।
क्या-क्या जहूरे<ref>प्रकट करना</ref> नूर<ref>प्रकाश</ref> दिखाती है शब-बरात॥
देखे हैं बन्दिगी<ref>पूजा, इबादत</ref> में जिसे जागता तो फिर।
फूली नहीं बदन में समाती है शब-बरात॥
रोशन हैं दिल जिन्होंके इबादत के नूर से।
उनको तमाम रात जगाती है शब-बरात॥

बख़्शिश<ref>खैरात</ref> खु़दा की राह में करते हैं जो मुहिब<ref>प्रेमी</ref>।
बरकत<ref>कल्याण</ref> हमेशा उनकी बढ़ाती है शब-बरात॥

ख़ालिक<ref>ईश्वर</ref> क बन्दिगी करो और नेकयों के दम।
यह बात हर किसी को सुनाती है शब-बरात॥

ग़ाफिल<ref>बेखबर</ref> न बन्दिगी से हो और खै़र से ज़रा।
हर लहज़ा<ref>हर समय</ref> यह सभों को जताती है शब-बरात॥

हुस्ने अमल<ref>शुभ कार्य</ref> करके जो भला आक़िबत<ref>यमलोक</ref> में हो।
सबको यह नेक राह बताती है शब-बरात॥

लेकर हमीर हमज़ा के हर बार नाम को।
ख़ल्क़त<ref>संसार</ref> को उनकी याद दिलाती है शब-बरात॥
क्या क्या मैं इस शब-बरात की खूबी कहूं ”नज़ीर“।
लाखों तरह की खू़बियां लाती हैं शब-बरात॥

शब्दार्थ
<references/>