भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपने तड़पने की / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
 
|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
 
}}
 
}}
 
+
[[Category:ग़ज़ल]]
 
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ<br>
 
अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ<br>
 
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का<br><br>
 
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का<br><br>

01:41, 6 सितम्बर 2008 का अवतरण

अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का

यह ऐश के नहीं हैं या रंग और कुछ है
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का

बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत कर
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का