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"प्रार्थना - 12 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
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दीन गुनी सज्जनों में निपट विनीत बने, | दीन गुनी सज्जनों में निपट विनीत बने, | ||
::प्रेमघन नित नाते नेह के निबाहिये। | ::प्रेमघन नित नाते नेह के निबाहिये। | ||
− | राग रोष औरों से न हानि लाभ कुछ उसी | + | राग रोष औरों से न हानि लाभ कुछ उसी, |
::नन्द के किसोर की कृपा की कोर चाहिए॥ | ::नन्द के किसोर की कृपा की कोर चाहिए॥ | ||
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11:52, 3 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
सम्पति सुयस का न अन्त है विचार देखा,
तिसके लिये क्यों शोक सिन्धु अवगाहिये।
लोभ की ललक में न अभिमानियों के तुच्छ,
तेवरों को देख उन्हें संकित सराहिए॥
दीन गुनी सज्जनों में निपट विनीत बने,
प्रेमघन नित नाते नेह के निबाहिये।
राग रोष औरों से न हानि लाभ कुछ उसी,
नन्द के किसोर की कृपा की कोर चाहिए॥