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"ताँका / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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सुधियों की वीणा है
 
सुधियों की वीणा है
 
पाया रस निर्झर!
 
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तुम सूरज!
 
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मेरे मन यादों का
 
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गुलमोहर झरा।
 
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शर्मीली भोर
 
शर्मीली भोर
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लो डाल गया रंग
 
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ये कौन? हुई दंग।
 
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खेल तो लूँ मैं
 
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तुमपे कान्हा, भीगें
 
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मन, प्राण हमारे।  
 
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नया सूरज
 
नया सूरज
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ख़ुशियों की रागनी
 
ख़ुशियों की रागनी
 
ये मन-वीणा गाए।
 
ये मन-वीणा गाए।
 
 
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उषा मोहिनी
 
उषा मोहिनी
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पीछे प्रीत पाहुन
 
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दिवस मुग्ध, आया।
 
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भोर है द्वार
 
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पवन भी मगन
 
पवन भी मगन
 
प्रेम वर्षे अपार।
 
प्रेम वर्षे अपार।
 
 
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झीनी चादर
 
झीनी चादर
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क्यों हुआ हाल ऐसा
 
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बड़ा खाता था ताव!
 
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ठिठुरी धूप
 
ठिठुरी धूप
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भोर ले के आ गई
 
भोर ले के आ गई
 
क्यों ये ठंडा-सा सूप?
 
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तुहिन पुष्प
 
तुहिन पुष्प

13:33, 22 मार्च 2016 के समय का अवतरण

1
बुहार दिए
निराशा के पत्रक
जा पतझर!
सुधियों की वीणा है
पाया रस निर्झर!
2
तुम सूरज!
मैं रससिक्त धरा
खूब तपा लो,
मेरे मन यादों का
गुलमोहर झरा।
3
शर्मीली भोर
उतरी धीरे-धीरे
पूर्व की ओर
लो डाल गया रंग
ये कौन? हुई दंग।
4
खेल तो लूँ मैं
होली संग तुम्हारे
ज्यों रंग डालूँ
तुमपे कान्हा, भीगें
मन, प्राण हमारे।
5
नया सूरज
नया सवेरा लाए
मन मुस्काए
ख़ुशियों की रागनी
ये मन-वीणा गाए।
6
उषा मोहिनी
नभ पथ चली, ले
सोने सी काया
पीछे प्रीत पाहुन
दिवस मुग्ध, आया।
7
भोर है द्वार
गाते पंछी करते
मंगलाचार।
पवन भी मगन
प्रेम वर्षे अपार।
8
झीनी चादर
सिहरा सा सूरज
ढूँढे अलाव।
क्यों हुआ हाल ऐसा
बड़ा खाता था ताव!
9
ठिठुरी धूप
ढूँढे है, कहाँ गया?
सूरज भूप।
भोर ले के आ गई
क्यों ये ठंडा-सा सूप?
10
तुहिन पुष्प
अम्बर बरसाए
धरा लजाए।
नवोढ़ा, सिमटी-सी,
ज्यों छुपी -छुपी जाए।