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"तखनी बुझिएं / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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लगे छड़क्का घोड़ा सरपट
खैबैं धौल जों करबे खटपट
दाँत नै धोबे कीड़ा फरतौ
हिली-हिली केॅ टुपटुप गिरतौ।