"गीत-सूक्ति / अनिल शंकर झा" के अवतरणों में अंतर
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दुनिया के कोन्हू कोना से, आबै छै चीत्कार।
लागै हमरे छाती भेलै, फेनू कोय प्रहार॥1॥
सब जानै छै दुष्ट जनोॅ के, निश्चित छै संहार।
काल चक्र मेटी केॅ रहतै, सोना सन संसार॥2॥
जेकरा पास नै शौर्य जरा सा, नै धरमेॅ के चाह।
छोड़ोॅ ओकरोॅ आश, चलॉे, देखी लेॅ अपनोॅ राह॥3॥
कामोॅ वक्ती के सोचै छै, ओकोॅ दुष्परिणाम।
भोगै वक्ती जाप करै छै, जय-जय सीता-राम॥4॥
मार करै पर ऐलै अर्जुन, दया-धरम बिसराव।
ओकरे गर्दन काटी ले, या अपन्हें शीश कटाय॥5॥
जांचला केॅ जांचै के इच्छा, प्रगति के व्यवधान।
रण में एक्के बार चलै छै, लक्ष्यहीन संधान॥6॥
एक घरोॅ में मातम बाँटै, दोसरा कन सहनारा।
पारा-पारी कानै-हँस्सै, दुनिया मन बहलाय॥7॥
राजा के संबल होय छै, जन-मानस के आधार।
जनमत बिन शासन बालू पेॅ पत्थर के दीवार॥8॥
जेकरोॅ शासन भूमि जन पर, ऊछेकै सरकार।
जेकरोॅ शासन दिल पर कायम, ऊ छेकै फनकार॥9॥
देश-काल के सीमा लांघेॅ, ऊ सच्चा फनकार।
मानवता के प्रेम-पुजारी, भावोॅ सें दरकार॥10॥
ई जीवन जंजाल जटिल, सब एकरा पर हैरान।
कोय एकरा पर जान हतै, कोय लै दोसर के जान॥11॥
मंजिल पावै के आशा नै, राखै छै फनकार।
सीमाहीन गगन में गूंजै, पंखोॅ के फटकार॥12॥
अखनी सच के निम्मर काया, दीया खैनें जाय।
झूठ बढै़ भाँसोॅ रं रोजे, बोढ़ै फेरू घिनाय॥13॥
राजनीति के कोल घरोॅ में, कालिख सें दरकार।
बिना रंगैनें हाथ-मुँह नै स्थिर सरकार॥14॥
हमरोॅ मेहनत ऐहनेॅ फललै, सोना बरसै भाय।
मोॅर मजूरी दै के बेरियां, मीतां लुटनें जाय॥15॥
सुन्दर चिकनोॅ मू देखी केॅ, सबके मन हरसाय।
भीतरघात चलै छै जखनी, तखनी सब पछताय॥16॥
लड़का बाला रोजे गुनै छै, केतना लेबै गिनाय।
दुःख दरिद्दर एक्के बेरिया, देबै दूर भगाय॥17॥
ईटा पर जोड़ै छी ईटा, दै छी महल बनाय।
अपना लेली उस्सठ भुय्यां, कहिया घोॅर छराय॥18॥
जखनी हुनका याद करै छी, तखनी सिहरै देह।
नीचें धरती तबलोॅ जाय छै, उपर घुमड़ै मेह॥19॥
चिनोॅ चुपड़ोॅ बात सुनी केॅ, केना हुवौ विभोर।
उजरोॅ धोती-कुरता पहनी, आगू बैठलैं चोर॥20॥
जै दुनिया में सच्चा मानुस, बौकोॅ गिनलोॅ जाय।
वै दुनिया के झुट्टा राजा, झुट्टे बात सुहाय॥21॥
बड़ी पुरानोॅ ई मरलोॅ के, दरकी गेलै दीवार।
ढ़ाही केॅ फेनू सें बनबोॅ, नै एकरोॅ एतबार॥24॥
सुखलोॅ जाय छै बाबू जी के, गल्ला के जयमाल।
उठोॅ कमर कस्सी के झाड़ोॅ, सब मकरा के जाल॥25॥
जे निरदोष बुतरूआ मारेॅ, तकर्है मीत बनाय।
जीते जी अगला पीढ़ी के, खोरी-खोरी जराय॥26॥
पढ़ी-लिखी केॅ मुनमा बनतै, अफसर बड़ा नबाव।
घुसखोरी सें नोट कमैतै, पूरा करतै ख्वाब॥27॥
जें-जें ठग विध्या करनें छै, ई माटी के साथ।
ओकरा सीख समैयां देतै, तोंहें उठबोॅ हाथ॥28॥
गिनती के छै चोर-उचक्का, अनगिनती छै साध।
अखनी जगलोॅ भेड़-बकरिया, आरो सुतलोॅ बाघ॥29॥
दीन दुःखी लेॅ टी.बी. चैनल, उध्योगी लैॅ छूट।
लूटै कै कूअत छै जेकरा, दोन्हूं हाथें लूट॥30॥
सोचै छेलियै रात गुजरतै, आखिर होयतै भोर।
पास-पड़ोसी जुटतै पोछतै, बाबू भैयां लोर॥31॥
तोरा सुन्दरता के अभियो, कम नै होलै आव।
रोजी-रोटी छीनी लेलकै, हमरे प्यार के ताव॥32॥
जें अपनोॅ सम्मान बेचलकै, पैसा खातिर आय।
ओकरा सीख समैया देतै, गहरा घाव लगाय॥33॥
मानुस तन केॅ यंत्र बनाना, होयथौं भारी भूल।
भाव बिना भावी पीढ़ी केॅ नै बनवोॅ तिरसूल॥34॥
सबसे निम्मर अनकट लकड़ी, तेकरे नाव बनाय।
वै पर चाहै सात समुन्दर, तीरथ करबै जाय॥35॥
फलोॅ के पंखुड़िये नाकी, सुन्दर कोमल गात।
सजलोॅ छै सजना लेॅ मन में, सपना के बारात॥36॥
लड़ना नै चाहै छै, लेकिन, लड़बै लेॅ तैयार।
डाड़ा में बान्ही राखै छै सोना के तलवार॥37॥
जखनी भी हँस्सै ले चाहौ, तखनी मारै मार।
याद दिलावै ओकातोॅ के, कतनै छै लाचार॥38॥