राही, चौराहों पर बचना! <br>
राहें यहाँ मिली हैं, बढ़ कर अलग-अलग हो जाएंगी जाएँगी <br>जिस को जो मंज़िल हो आगे-पीछे पाएंगी पाएँगी <br>
पर इन चौराहों पर औचक एक झुटपुटे में <br>
अनपहचाने पितर कभी मिल जाते हैं: <br>
कभी पुरानी सन्धि-वाणियाँ <br>
और पुराने मानस की धुंधली घाटी की अन्ध गुफा को <br>
एकाएक गुंजा जाती हैहैं; <br>
काली आदिम सत्ताएँ नागिन-सी <br>
कुचले शीश उठाती है-- हैं— <br>
राही <br>
शापों की गुंजलक में बंध जाता है: <br>
घात बैठी रहती हैं <br>
जीर्ण रूढ़ियाँ <br>
हवा में मंडराते संचित अनिष्ट, उन्माद, भ्रान्तियाँ-- भ्रान्तियाँ— <br>
जो सब, जो सब <br>
राही के पद-रव से ही बल पा, <br>
बचना। <br> <br> <br>
<span style="font-size:14px">देल्फ़ी, ग्रीस]</span>