भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तितिर-बितिर किंछा सब गोछियावोॅ / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=कुइया...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:10, 8 जून 2016 के समय का अवतरण

तितिर-बितिर किंछा सब गोछियावोॅ
सांझ भेलोॅ आवै छौं लौटे के-आवोॅ।

पर्वत रोॅ फुनगी पर जाय चढ़लै किरिन
खोली मेॅ आँख मुनी सुती गेलै दिन
आबॅे संझवाती के भुक-भुक रोॅ बेला छै
टापे-टुप फिन अन्हार, दू पल रोॅ खेला छै
आबेॅ की लाभ-शुभ करना छै-मटियावोॅ।

हाँक कौनें पारै छै रही-रही केॅ अनचिन्हार
औघट ई घाट छेकै अजगैती-अनभुवार
केन्होॅ अनकट्ठोॅ समय रोइयाँ तोंय काँटोॅ छै
आपने साँस मुहोॅ पर बोड़नी रोॅ झाँटो छै
तैय्यो लहर शीतला रोॅ केन्होॅ केॅ अनठावोॅ।

पानी पर आग बरै गोड़ रखी चलना छौं
पिपरी के मुँहोॅ सें मछरी निगलना छौं
सामने छौं युग-युग के जानलोॅ ऊ खाको वन
डबकी केॅ उधियावै आगिन पर आधन
नेहॉे के नीर-पीर छोड़ोॅ-पसावोॅ।