भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सिमरिया पुल / मुकेश कुमार सिन्हा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश कुमार सिन्हा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:12, 11 जून 2016 के समय का अवतरण

जब भी जाता हूँ गाँव
तो गुजरता हूँ, विशालकाय लोहे के पुल से
सरकारी नाम है राजेन्द्र प्रसाद सेतु
पर हम तो जानते हैं सिमरिया पुल के नाम से
पार करते, खूब ठसाठस भरे मेटाडोर से
लदे होते हैं, आलू गोभी के बोरे की तरह
हर बार किराये के अलावा, खोना होता है
कुछ न कुछ, इस दुखदायी यात्रा में
पर, पता नहीं क्यों,
इस पुल के ऊपर की यात्रा देती है संतुष्टि!!

माँ गंगा की कल कल शोर मचाती धारा
और उसके ऊपर खड़ा निस्तेज, शांत, चुप
लंबा चौड़ा, भारी भरकम लोहे का पुल
पूरी तरह से हिन्दू संस्कारों से स्मित
जब भी गुजरते ऊपर से यात्री
तो, फेंकते हैं श्रद्धा से सिक्का
जो, टन्न की आवाज के साथ,
लोहे के पुल से टकराकर
पवित्र घंटी की ठसक मारता है पुल,
और फिर, गिरता है जल में छपाक!!

हर बार जब भी गुजरो इस पुल से
बहुत सी बातें आती है याद
जैसे, बिहार गौरव, प्रथम राष्ट्रपति
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की, क्योंकि सेतु है
समर्पित उनके प्रति!!
पर हम तो महसूसते हैं सिमरिया पुल
क्योंकि यहीं सिमरिया में जन्मे
हम सबके राष्ट्र कवि “दिनकर”
एकदम से अनुभव होता है
पुल के बाएँ से गुजर रहे हों
साइकल चलाते हुए दिनकर जी!!
साथ ही, गंगा मैया की तेज जलधारा
पवित्र कलकल करती हुई आवाज के साथ
बेशक हो अधिकतम प्रदूषण
पर मन में बसता है ये निश्छल जल और पुल!!

और हाँ!! तभी सिमरिया तट पर
दिख रहा धू-धू कर जलता शव
और दूर दिल्ली में बसने वाला मैं
कहीं अंदर की कसक के साथ सोच रहा
काश! मेरा अंतिम सफर भी, ले यहीं पर विराम
जब जल रहा हो, मेरे जिस्म की अंतिम धधक
इसी पुल के नीचे कहीं
तो खड्खड़ता लोहे का सिमरिया पुल
हो तब भी... अविचल!!
माँ गंगा को नमन!!