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"जो रचा नहीं / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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जिसे देनेवाला भी मैं कौन हूँ <br> | जिसे देनेवाला भी मैं कौन हूँ <br> | ||
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14:09, 9 अप्रैल 2008 का अवतरण
दिया सो दिया
उस का गर्व क्या, उसे याद भी फिर किया नहीं।
पर अब क्या करूँ
कि पास और कुछ बचा नहीं
सिवा इस दर्द के
जो मुझ से बड़ा है—इतना बड़ा है कि पचा नहीं—
बल्कि मुझ से अँचा नहीं—
इसे कहाँ धरूँ
जिसे देनेवाला भी मैं कौन हूँ
क्योंकि वह तो एक सच है
जिसें मैं तो क्या रचता—
- जो मुझी में अभी पूरा रचा नहीं!