"झूठ नै कहै छियौं / वसुंधरा कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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वहा बंसविटटी | वहा बंसविटटी | ||
चैवटिया पर बुढ़वा बोर गाछ | चैवटिया पर बुढ़वा बोर गाछ | ||
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सनसनैतेॅ हनहनैतेॅ हवा केॅ | सनसनैतेॅ हनहनैतेॅ हवा केॅ | ||
आकाश सेॅ पानी रं बरसतेॅ धूप केॅ | आकाश सेॅ पानी रं बरसतेॅ धूप केॅ |
08:41, 13 जून 2016 का अवतरण
शहर के ई पांच मंजिला मकान
जेकरोॅ निचलका छत के नीचे
हमरोॅ फ्लैट छै
दुनिया भरी के सुख-सुविधा साथें
एक-दू नै चार-चार कोठरी
आरो रहै वाला आदमी बैठां
बस हम्मेॅ आरो हुनी,
जिनकोॅ साथे
हमरोॅ जिनगी के शेष उमिर बीतना छै
कोय कोर-कसर नै राखलेॅ छै
नै कोठरी सजाय मेॅ
नै हमरोॅ जिनगी केॅ सॅवारै मेॅ
छत सेॅ लैकेॅ दीवार तांय
कौन-कौन विदेशी संगीत के
मद्धिम-मद्धिम स्वर केॅ
सरसरैतेॅ रहै छै ।
शीशा धरोॅ में बन्द पानी
पानी में मछली
चैबीस घन्टा बिजली के रोशनी
बिजली के हवा
गमला में उगलोॅ बरगद सेॅ लैकेॅ
बाँसा के झुरमुट
मतुर तमियो तेॅ हमरोॅ मोॅन करै छै
अपनोॅ गाँव के वहा नददी
वहा बंसविटटी
चैवटिया पर बुढ़वा बोर गाछ
आरो ऊ गाछी के नीचे
सनसनैतेॅ हनहनैतेॅ हवा केॅ
आकाश सेॅ पानी रं बरसतेॅ धूप केॅ
खोचा मे भरी लौं
सुपती मौनी मेॅ समेटी लौं
जे कमियो नै हुए पारेॅ
कमियो नै होलोॅ छै
तही सेॅ तेॅ अटारी में रहियो केॅ
उदास रहै छियै