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"हत्या / विवेक निराला" के अवतरणों में अंतर
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एक नायक की हत्या थी यह
जो खुद भी हत्यारा था।
हत्यारे ही नायक थे इस वक्त
और नायकों के साथ
लोगों की गहरी सहानुभूति थी।
हत्यारों की अन्तर्कलह थी
हत्याओं का अन्तहीन सिलसिला
हर हत्यारे की हत्या के बाद
थोड़ी खामोशी
थोड़ी अकुलाहट
थोड़ी अशान्ति
और अन्त में जी उठता था
एक दूसरा हत्यारा
मारे जाने के लिए।