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ई दुष्ट प्रेत छिकै, बहुरुपिया!
जहाँ केल्हेॅ शुभ विचार,
कि शंका तैयार!
कौहुँ जाथा के पहाड़
काहूँ मौत के ठहार,
विश्वासॅ के मुन्हाँ पर अवसरॅ साँप,
कुन्हा के शाप,
नै फोनों सीमा, नै नाव।
नै नाचै नै गाबै,
आपनॅ छिखॅ के हफीमॅसं
बच्चा विश्वास केॅ सुवावै,
जे फेरू नै जागै
चाहेॅ कोय जगाबै।
जेना झाँझकॅ सुरजॅ पर पच्छिम
जनैरा के डिब्मी पर बिग्घिन,
मिक्कँ विचार के मेमना पर बाघ,
गरीब-गुरुवा के बुहह पर माघ,
हरिवैलॅ असलॅ पर आग,
जब आवँ अन्हरॅ, सब साफ।