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आज बुलाकी के बेटा केॅ हे देखोॅ लागलोॅ छै भूत।
सबकेॅ छै विस्वास कि मैनी डैनी के छेकै करतूत॥
बोलै छै बिल्टू, ”यँ गामों में मैनी छै पक्को डाय्न।
एकरा संे हरतोपोॅ लेलेॅ छै-ओझां-भगतें-भगताय्न॥
हम्में अपना आँखीं देखलाँ एकरोॅ लीला भारी।
नाङ् टी होयकेॅ नाचै छेली, सूपोॅ में दीया बारी॥
ओकरा ठीक करैके हम्में सोचै छीहौं एक उपाय।
गू धोरी ओकरा पिलबाबोॅ, या ओझा सें देॅ नचबाय॥
बिल्टू के ई बात सुनो केॅ हमरा हस्सी लागै छै।
झूठ गढ़ी केॅ बात कहैछेॅ, केहनोॅ बात बनाबै छै॥
भला कहां छै भूत? कहाँ डाइन छै? ओझा-गुनी कहाँ?
सब छै खाली बहम, अन्धविस्वास-मूर्खता जहाँ-तहाँ॥
यै विज्ञानों के युग में अभियौं अन्धेर मचाबै छै।
भोली-भाली इस्त्री केॅ नंगी करि नाँच नचाबै छै॥
यै देसोॅ के आज कहाँ सालीन-भाव छै हे भगवान!
पढ़लौ-ज्ञानी जनता में, कब तक रहतै एहनोॅ अग्यान?