भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आकाश / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:54, 4 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
जिसमे अपनी नाव चलाता,
दिन भर सूरज चमकीला।
और रात में तारों को ले,
चन्द्र जहाँ करता लीला।
जिसकी गोदी में शिशु हाथी,
सा फिरता बादल गीला।
हिलती हरियाली के ऊपर,
छाया जो नीला नीला।
वह ही है आकाश बालकों,
जिसका है कुछ ओर न छोर।
गर्व बड़प्पन का हो जिसको,
पहले देखे उसकी ओर।