भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँच / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:35, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

मिथ्या-परे न पाप है, साँच-रे नहि धर्म।
धरनी साँचो जो कहै, ताहि लागे कर्म॥1॥

धरनी साँचे जो भये, झूठे संग न जाँहि।
पंचामृत को परिहरैं, रुखा टूका खांहि॥2॥

जो जन जग में झूठ तजि, साँचे व्रत गहि लेय।
धरनी ताके चरण पर, शीश अपनो देय॥3॥

पर-निन्दा पर-धन तजै, पर-नारी नहि चाव।
साँच कहै सहजै रहै, धरनी वन्दे पाव॥4॥

मृषा कहै नहि जानिके, साँच न धरै छपाय।
धरनी सोजन निर्मला, कोइ देखो अजमाय॥5॥