भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सृष्टि / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:34, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

हतो जव शून आकाश विस्तार नहि, कियो कर्त्तार वहु नर्क देवा।
जोति ऊदोति जग विदित दहु दिशि भवो, पूर्ण परकाश तन तिमिर छोवा॥
शारदा शम्भु सनकादि निगमादि जत, सहित मुनि असुर नर नाग देवा।
धरनि जन करत कर जोरि उर दण्डवत, मेटि दुख द्वन्द प्रभु मानि सेवा॥10॥