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हतो जव शून आकाश विस्तार नहि, कियो कर्त्तार वहु नर्क देवा।
जोति ऊदोति जग विदित दहु दिशि भवो, पूर्ण परकाश तन तिमिर छोवा॥
शारदा शम्भु सनकादि निगमादि जत, सहित मुनि असुर नर नाग देवा।
धरनि जन करत कर जोरि उर दण्डवत, मेटि दुख द्वन्द प्रभु मानि सेवा॥10॥