भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"द्रौपदी रक्षा / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:56, 21 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

द्रौपदी हियामँ हरि को जो सुमिरन कियो, अंतर जनैया जानि मानि लवो भावरे।
अछय वचन आओ अँबर अमूह लाओ, पूर लाजते लजाओ दुशासन बावरे॥
धरनि कहत जाके पौरुषको अंत नाहि, ताकी बाँह थाकी परी आय तन ताव रे।
गोहन तियाको मन-मोहन छोड़ायो आनि, लायो पतिव्रत यशवेलि जग साँवरे॥13॥