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कर्त्ताराम-नाम निर्मद पद, सन्तन, प्रान-पियारा।
करि दंडवत जोरि कर निशि दिन, प्रनमत बारंबारा॥1॥
चारोँ युग है भक्ति अखंडित, आदि अंत मधि लागी।
कलियुग छाप तिलक अरु माला, प्रगट भये वैरागी॥2॥
महापवित्र माधवाचारज आदि सम्प्रदा चारी।
रामानन्द विष्णु स्वामी औ, निम्वादित हैँ भारी॥3॥
चारो घर को घनो अखाड़ो, द्वारा बहुत दृढ़ानो।
जिनको नाम सुनो भइ सन्तो! कहाँ जहाँ लगि जानो॥4॥
नन्तानन्द, कबीर सु रसुरा, पीपा जीको द्वारा।
अग्र कील को भवो अनुग्रह, जिनको बड़ो पसारा॥5॥
खोजी जंगी विरमा त्यागी, देवाकर, हरिप्यारा।
अनुभवनंद व अभय मुरारी, कलि गोरख अवतारा॥6॥
परशुराम, पूरन वैराठी, लाहा टीला जानी।
कालू शोभा, नाभा मैना, बबर घमंडी ज्ञानी॥7॥
जनक और हरिवंश गोसाँई, कामदेव गुन गाये।
राधा वल्लभ विट्ठल गोकुल, नीरंजन पद पाये॥8॥
धरनदास धरी सत संगति, द्वारावली सुनाई।
जँह जैसी जगदीश बनाई, तँह तैसी हो जाई॥9॥