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217.
ध्यान धनी को जो करै, हर दम धरि बिलमाँहि।
पारतरे बिनु नावरी, दरिया बूड़ै नाहि॥
पवन पवारि सकै नहीं, वहि नहि अगिन जराव।
कोइ न करै जोरावरी, काल सकुचि शिरनाव।
दूलह दिन दूनी सदा, निशि दिन सुमत संहाना॥
बोलै शब्द सोहावना, साँच के साँचे ढारि।
तासु बराबर को तुलै, धरनीदास पुकारि॥1॥