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"आरती 3 / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

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मंगल चार करो भइ संतो। भौ भिनुसार मिमिर को अंतो॥
मंगल थारि आरती बारी। मंगल चाल शंख धुनि भारी॥
मंगल महिधर धरति अकास। मंगल रवि शशि पवन हुलास॥
मंगल राम राम रस पीव। मंगल सब घट जँह लगि जीव॥
मंगल आरति सकल अनंद। गावे विमल विनोदानंद॥

पोथी शब्द प्रकाश बाबा धरनीदास जी के बानी सारनी कवीत लीला भजन

महराइ पंवारा संपुरन समाप्त। लिखल धरनीदास पेसर लाला बस्ती राम साकिन सुधर छपरा परगना मांझी पोथी लिखल महंथ रामदास जी वास्ते। सुभ सम्वत् 1926 मास वैसाख दुजा का पुरनमाशी रोज सोमवार के लिखल तइयार भइल तात्र बइसाख सानी सन 1276 साल।


गुरु परनाली लिखते।

प्रथम बंदौ धरनेश्वर स्वामी। बार बार तब चरन नामी॥
सामी सदानंद कीवो सतकार। भए अमर जी हांक प्रचार॥
माया राम पर किरिपा कीन्ह। श्री राम रटन जी को दरशन दीन्ह॥
श्री बाल मुकुन्द जी को बड़ो सुबास। जिन्हि के भए निरमल रामदास॥

दोहा:

गुरु परनाली गावे। धरे गुरुन को ध्यान॥
सो नर निसचै पावे। अलख पुरुख निरवान॥

एता संपुरन।