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"कटारड़ु / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर

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सर्दी की गुनगुनी धूप में
आज सुबह से निहार रही है वह औरत
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छत पर लेटा मैं
जड़ से उखड़े सेब के पेड़ को
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देखता रहा बड़ी देर तक  
जो था लदकद कच्चे हरे सेबों से
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आकाश
रो रही है वह औरत
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एकटक
जांच रही है उसकी टहनी से लेकर
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बूढ़ी अम्मा को लपेटते
जड़ तक का हर हिस्सा
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अपनी पींजी-अनपींजी रुई के
बारीकी से
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ढेरों फाहे
अपने दिमाग को खुफिया तंत्र से जोड़ती
+
कर रही है तसल्ली
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तलाश रही है वह हर सुराग
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जिसका हाथ रहा है पेड़ को
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उसकी जमीन से अलग करने का
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(2)
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यह उसके लिए मात्र कमाई करने वाला
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कटारडुओं के छोटे-छोटे झूंड
सेब का पेड़ नहीं था
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इधर से उधर
था उसके सुख-दुख का सच्चा साथी
+
तेजी से उड़ते, मस्ती में खेलते
यादों को सहजने का जरिया
+
और बांधते रुई को गांठों में
उसके अतीत का एक सुनहरा पन्ना
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अम्मा को देते सहारा
बेटे के जन्मदिन पर
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पिता ने दी थी उसे
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उसकी जमीन
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ताकि बचा रह सके अस्तित्व उसका
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जुड़ा रह सके वह अपनी जमीन से ताउम्र
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पीढ़ियों तक
+
  
बेटे के विदेश में बसने के बाद
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वे जानते हैं
रखती रही वह इसके फल सहेजकर
+
काम खत्म होते ही
हर वर्ष
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टिमटिमाते तारों
एक आस लगाए
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और खिलखिलाते चांद के बीच
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अम्मा सुनाएगी उन्हे
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कोई बढ़िया-सी कहानी
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एक मीठी-सी लोरी
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इसलिए तेजी से वे
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समेट रहे थे रुई
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बहेलिए को चकमा देते हुए
  
वह आएगा इस वर्ष
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'''कटारडु -एक छोटी चिड़िया जो मिट्टी से घर की छत या दीवारों पर अपना घोंसला तैयार करती है। उसे यहां की बोली में कटारड़ु के नाम से पुकारा जाता है।'''   
जरुर लौटेगा वह
+
ममता की छांव तले
+
खूब भाते रहे इस पेड़ के फल उसे
+
मां की अंगुली छूटने से पहले तक ही
+
अब हर बार रखे-रखे सूख जाते हैं वे
+
मां के मन और सपनों की तरह
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नहीं पहुंचता उसका बेटा
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इस साल भी
+
 
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अब बेटे के पांव में निकल आए थे पंख
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और उसने भर दी थी खूब लंबी उड़ान
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इस पेड़ की नाजुक टहनी से ही
+
टहनी को तोड़ते हुए
+
 
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सोचती है मां
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अच्छे ही थे हम बिना सेब के
+
इन सेबों ने कर दिया परिवार को दूर-दूर
+
इनकी कमाई खा गई हमारी सारी खुशियां
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धीरे-धीरे बिना कोई आवाज किए
+
 
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आज रोती है मां दहाड़े मार-मार
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आंखों को
+
सेब की तरह लाल करती हुई
+
दिन-रात
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03:27, 8 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

सर्दी की गुनगुनी धूप में
छत पर लेटा मैं
देखता रहा बड़ी देर तक
आकाश
एकटक
बूढ़ी अम्मा को लपेटते
अपनी पींजी-अनपींजी रुई के
ढेरों फाहे

कटारडुओं के छोटे-छोटे झूंड
इधर से उधर
तेजी से उड़ते, मस्ती में खेलते
और बांधते रुई को गांठों में
अम्मा को देते सहारा

वे जानते हैं
काम खत्म होते ही
टिमटिमाते तारों
और खिलखिलाते चांद के बीच
अम्मा सुनाएगी उन्हे
कोई बढ़िया-सी कहानी
एक मीठी-सी लोरी
इसलिए तेजी से वे
समेट रहे थे रुई
बहेलिए को चकमा देते हुए

कटारडु -एक छोटी चिड़िया जो मिट्टी से घर की छत या दीवारों पर अपना घोंसला तैयार करती है। उसे यहां की बोली में कटारड़ु के नाम से पुकारा जाता है।