भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खतरा अस्तित्व का / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
ज्यादा मत चाहो,<br> | ज्यादा मत चाहो,<br> | ||
पूरा अस्तित्व ही<br> | पूरा अस्तित्व ही<br> | ||
− | खतरे में | + | खतरे में पड़ जाता हॆ ।<br><br> |
खोकर अपनी पहचान ,<br> | खोकर अपनी पहचान ,<br> | ||
आदमी न जी पाता है ,<br> | आदमी न जी पाता है ,<br> | ||
न मर पाता है ।<br> | न मर पाता है ।<br> | ||
पूरा अस्तित्व ही<br> | पूरा अस्तित्व ही<br> | ||
− | खतरे में | + | खतरे में पड़ जाता है॥<br><br> |
किसी से प्रेम इतना न करो <br> | किसी से प्रेम इतना न करो <br> | ||
− | कि वो विवशता | + | कि वो विवशता का रूप ले ले,<br> |
क्योंकि विवशता को ढोने में ,<br> | क्योंकि विवशता को ढोने में ,<br> | ||
जीवन व्यर्थ चला जाता है ।<br> | जीवन व्यर्थ चला जाता है ।<br> | ||
पूरा अस्तित्व ही<br> | पूरा अस्तित्व ही<br> | ||
− | खतरे में | + | खतरे में पड़ जाता है॥<br><br> |
प्रेम जीवन के लिये है अनिवार्य,<br> | प्रेम जीवन के लिये है अनिवार्य,<br> | ||
किन्तु वह जीवन का लक्ष्य नहीं,<br> | किन्तु वह जीवन का लक्ष्य नहीं,<br> | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
कुछ हाथ नही आता है?<br> | कुछ हाथ नही आता है?<br> | ||
पूरा अस्तित्व ही<br> | पूरा अस्तित्व ही<br> | ||
− | खतरे में | + | खतरे में पड़ जाता है॥<br><br> |
जिन्दगी सिर्फ़ प्रेम से चल सकती नहीं,<br> | जिन्दगी सिर्फ़ प्रेम से चल सकती नहीं,<br> | ||
− | जिन्दगी एक | + | जिन्दगी एक ही बिन्दु पर रुक सकती नहीं,<br> |
किन्तु प्रेम की अनुभूति से -<br> | किन्तु प्रेम की अनुभूति से -<br> | ||
− | जीवन संभल -संवर जाता है।<br> | + | जीवन संभल-संवर जाता है।<br> |
पूरा अस्तित्व ही<br> | पूरा अस्तित्व ही<br> | ||
− | खतरे में | + | खतरे में पड़ जाता है॥<br><br> |
+ | |||
१९८७ में रचित <br> | १९८७ में रचित <br> |
21:46, 12 अक्टूबर 2008 का अवतरण
किसी को हद से
ज्यादा मत चाहो,
पूरा अस्तित्व ही
खतरे में पड़ जाता हॆ ।
खोकर अपनी पहचान ,
आदमी न जी पाता है ,
न मर पाता है ।
पूरा अस्तित्व ही
खतरे में पड़ जाता है॥
किसी से प्रेम इतना न करो
कि वो विवशता का रूप ले ले,
क्योंकि विवशता को ढोने में ,
जीवन व्यर्थ चला जाता है ।
पूरा अस्तित्व ही
खतरे में पड़ जाता है॥
प्रेम जीवन के लिये है अनिवार्य,
किन्तु वह जीवन का लक्ष्य नहीं,
प्रेम में तपने-मिटने के सिवा ,
कुछ हाथ नही आता है?
पूरा अस्तित्व ही
खतरे में पड़ जाता है॥
जिन्दगी सिर्फ़ प्रेम से चल सकती नहीं,
जिन्दगी एक ही बिन्दु पर रुक सकती नहीं,
किन्तु प्रेम की अनुभूति से -
जीवन संभल-संवर जाता है।
पूरा अस्तित्व ही
खतरे में पड़ जाता है॥
१९८७ में रचित